अनंत शून्य
अनंत शून्य
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शब्द निःशब्द जब हो जाते
जन्म लेती है मूक क्रांति
फिर प्रचारित क्यों है यह भ्रांति
कि मूक यानी सचमुच मौन है ,
जबकि वो मात्र एक क्षणिक साइलेंट झोन है
जो स्वयं अकेला चल पड़ा
दिखता संख्या में गौण है,
वो शून्य जिसमे यह शक्ति निहित है
एक को दस, सौ, हजार, लाख बनाता
यह गौण शून्य का अनंत विस्तार है
शून्याकार पृथ्वी, सूर्य चंद्र शून्य है
मनुष्य के जीवनकाल का वर्तुल
अंततः शून्य है
एक शब्द एक अर्थ
बाकी सारे व्यर्थ तर्क
शून्य में व्यवहार चलित
शून्य से अंतरिक्ष का गणित
शून्य से सीमाएं बंधित
शून्य में कृष्ण राम चरित्र
शून्य सत्य शून्य नही
अगणनीय विराट अनंत है
फिर इसी मूक, मौन का
सत्य क्यों अस्वीकृत है,
किंतु इसी शून्य से हम क्यों आतंकित है?
अर्थात इसके असीम विस्तार को
मन ही मन स्वीकारते हो
डरते हो शून्य से इसीलिए नकारते हो
कब तक? कहां तक ?
इस सत्य से भागोगे ,
शून्य के अस्तित्व को समझोगे, निद्रा से जागोगे ।
जन्म यदि है विषयों में आसक्ति
तो शून्य है विरक्ति और विषयों से मुक्ति
शून्य को अपनाओ, प्यार से बाहें फैलाओ
शून्य में निश्चिंत हो , शून्य में खो जाओ ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)