Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Apr 2024 · 3 min read

हर जौहरी को हीरे की तलाश होती है,, अज़ीम ओ शान शख्सियत.. गुल

हर जौहरी को हीरे की तलाश होती है,, अज़ीम ओ शान शख्सियत.. गुलज़ार साहब.. की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मेरे हिसाब से इजाजत है मगर जिस पर आज लिखने जा रही हूँ वह फिल्म भी बेहतरीनी में कुछ कम नहीं.
किताब… 1977 में आई ये फिल्म गुलज़ार साहब के निर्देशन का एक अलग ही पक्ष उजागर करता है.
इंसान के जज्बातों को झिंझोड़ देने वाली कहानी है..
किताब.. इस फिल्म के मंथन करने योग्य कई आयाम हैं,,, फिल्म के केंद्र में एक बच्चा है बाबला.
बाबला के दीदी और जीजा जी उसे अपने साथ रखते हैं, उसको तालीम दिलाने के लिए मगर बाबला ऐसा बच्चा है, जिसका पढ़ाई में दिल नहीं लगता, वह इस तरह की शिक्षा व्यवस्था को सही नहीं समझता जिसमें केवल किताबी पढ़ाई के मायने हो और अपनी इच्छा से कुछ कर सकने वाला अध्याय ना हो.
कुल मिलाकर वह अपने लिए एक खुला आसमान चाहता है और इसलिए दीदी के घर से बिना बताए भाग जाता है ट्रेन से शुरू होती है यह फिल्म और बाबला के सोचे हुए विगत जीवन से आगे बढ़ती है.
बाबला अपनी मां के पास जाने के लिए बिना टिकट के ट्रेन में बैठ जाता है,तमाम दिक्कतों का सामना करता हुआ वह अंततः अपने मां के घर पहुँच जाता है मगर कहानी यहीं खत्म नहीं होती,,
यहां से शुरुआत होती है बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की.
उसके दीदी और जीजा जी उसे अपने पास तो रखते हैं मगर उनकी आपस में ही खींचातानी है,वह भले ही दीदी और जीजा जी है मगर वह मां और आप भी हो सकते हैं. दीदी खुद अपनी जिंदगी में इतनी मशरूफ है कि उसे फुर्सत ही नहीं अपने ही भाई की मनोदशा समझने की. इस परिप्रेक्ष्य में उसका पति सराहनीय है, वह बाबला को प्रेम करता है,उसके प्रति सहानुभूति पूर्ण है मगर एक दिन स्कूल से आई रोज-रोज की शिकायतों से वह भी तंग आ जाता है और बाबला को बहुत जोर का तमाचा मारता है.
कुछ छोटे-छोटे दृश्य हैं जो मन को भारी,,आंखों को नम कर जाते हैं…कुछ दृश्य गुदगुदाते भी हैं जिनमें बच्चों की आम सी शरारतें, अपने स्कूली दिनों की याद दिला जाते हैं.
सन् 77 की यह फिल्म है जिसमें एक दृश्य में बाबला की क्लास का ही एक दुष्ट बच्चा, उसकी दीदी को…क्या माल है…कहता है, तब से लेकर अब तक मानसिकता आज भी वही है बल्कि उससे भी खराब.
बाबला एक अलग किस्म का बच्चा है और मुझे लगता है हर बच्चा ही ऐसा होता है.
एक जगह पर वह कहता है कि क्या सितार बजाने के लिए उन्होंने ज्योग्राफी पढी होगी.. वह रोज कुछ लिखता है,एक दिन…रविंद्र नाथ टैगोर तो कभी स्कूल नहीं गए फिर वह इतने बड़े कैसे हुए..
जैसा प्रश्न सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सचमुच तालीम महज़ किताबों से मिलती है.
कहने को तो यह एक फिल्म है, मगर 77 में बनी फिल्म 2024 में सर्वाधिक प्रासंगिक है.
मुझे लगता है हर अभिभावक को यह फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए,जो अपने बच्चों को बस्तों और किताबों के बोझ तले मार देना चाहते हैं,,जो महज़ पैसों से अपने बच्चों को बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं..
सबसे गुजरते हुए अंततःयह फिल्म एक सुखद मोड़ पर पहुंचती है, ट्रेन से गुजर कर बाबला जीवन की वास्तविकताओं से भी रूबरू होता है,और शिक्षा की अहमियत को समझता है,
वह फिर से अपने जीजा जी के साथ उनके घर को चला जाता है पढ़ने के लिए..
✍️किताबों में नहीं होता है जिंदगी का सबक
किताबों से बिना गुजरे मगर मिलता कहां है✍️
दीदी बनी विद्या सिन्हा जँचीं हैं..
उत्तम कुमार ने जीजा जी का कैरेक्टर बखूबी निभाया है..
मां के रूप में दीना पाठक अच्छी लगी हैं..

128 Views
Books from Shweta Soni
View all

You may also like these posts

3767.💐 *पूर्णिका* 💐
3767.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Zbet– nơi bạn khát khao chinh phục những đỉnh cao thắng lợi
Zbet– nơi bạn khát khao chinh phục những đỉnh cao thắng lợi
zbetdoctor
हां मैंने ख़ुद से दोस्ती की है
हां मैंने ख़ुद से दोस्ती की है
Sonam Puneet Dubey
कहते हैं
कहते हैं
हिमांशु Kulshrestha
नील पदम् के दोहे
नील पदम् के दोहे
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
आहिस्था चल जिंदगी
आहिस्था चल जिंदगी
Rituraj shivem verma
रविवार की छुट्टी
रविवार की छुट्टी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मन के भाव
मन के भाव
Surya Barman
#लघुकथा-
#लघुकथा-
*प्रणय*
जीवन दर्शन मेरी नजर से ...
जीवन दर्शन मेरी नजर से ...
Satya Prakash Sharma
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Tarun Singh Pawar
झूठ बोलती एक बदरिया
झूठ बोलती एक बदरिया
Rita Singh
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Deepesh Dwivedi
परेशां सोच से
परेशां सोच से
Dr fauzia Naseem shad
दास्तान ए दिल की धड़कन
दास्तान ए दिल की धड़कन
ओनिका सेतिया 'अनु '
बेशर्मी के कहकहे,
बेशर्मी के कहकहे,
sushil sarna
*पानी सबको चाहिए, सबको जल की आस (कुंडलिया)*
*पानी सबको चाहिए, सबको जल की आस (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*चेहरे की मुस्कान*
*चेहरे की मुस्कान*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
दरकती ज़मीं
दरकती ज़मीं
Namita Gupta
विषय तरंग
विषय तरंग
DR ARUN KUMAR SHASTRI
घर आये हुये मेहमान का अनादर कभी ना करना.......
घर आये हुये मेहमान का अनादर कभी ना करना.......
shabina. Naaz
कॉटेज हाउस
कॉटेज हाउस
Otteri Selvakumar
जोकर
जोकर
Neelam Sharma
दामन जिंदगी का थामे
दामन जिंदगी का थामे
Chitra Bisht
मैं भी आज किसी से प्यार में हूँ
मैं भी आज किसी से प्यार में हूँ
VINOD CHAUHAN
बहुत खूबसूरत है मोहब्बत ,
बहुत खूबसूरत है मोहब्बत ,
Ranjeet kumar patre
22. *कितना आसान है*
22. *कितना आसान है*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
जब तक हम अपने भीतर नहीं खोजते हम अधूरे हैं और पूर्ण नहीं बन
जब तक हम अपने भीतर नहीं खोजते हम अधूरे हैं और पूर्ण नहीं बन
Ravikesh Jha
हम हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान है
हम हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान है
Pratibha Pandey
Loading...