__5__कोई मज़हब ऐसा बनाओ
दूरियां हो जाएं कम ना होने पाए कोई आंख नम,
मिट जाएं हमारे गम मैं और तू नहीं बन जाय हम,
अद्वितीयता की धुन बनाओ,
कोई मज़हब ऐसा बनाओ ।।
न पंडित ना कोई शेख़ मानव सब मानव बन जाएं,
आतंक के मिटे निशान अमन चैन के पुष्प खिलाएं,
बारूद से ख़ुद को बचाओ,
कोई मज़हब ऐसा बनाओ ।।
राग द्वेष को दूर भगाकर एकता के मिल गीत गाओ,
ऊंच-नीच के भेद मिटाकर तुम अमन के राग गाओ,
अहंकार मन का मिटाओ,
कोई मज़हब ऐसा बनाओ।।