_19_मैं मचल रहा हूं
निश्छल है उनका प्रेम या सिर्फ़ उनका छलावा,
पूछते हैं कुशल क्षेम या सिर्फ़ उनका दिखावा,
वहां है कोई हरीफ या सिर्फ़ देते दुहाई,
वहां जाने का कोई झरोखा या सिर्फ़ जान गवाई,
क्या होती है कहीं जान या सिर्फ़ काया बेजान,
होकर अंतर्ध्यान कराने को आत्मज्ञान,
मैं मचल रहा हूं।।
ज्ञानी अज्ञानी है कोई या सिर्फ़ होती लड़ाई,
बंधुता भी करता है कोई या सिर्फ़ राजनीति फैलाई,
पुष्प बिछाता है कोई या सिर्फ़ बारूद बिछाई,
दैवीय रुप है उसका या सिर्फ़ करते उपहास,
विषपान कराते हैं या सिर्फ़ अमृत का अहसास,
न्योछावर होते प्रान या सिर्फ़ क्षमावान,
मैं मचल रहा हूं।।