_15_प्रदूषण का दानव
कभी बसन्त से पहले बहार आ जाती थी,
आज तो बसंत भी पतझड़ में बदल गया,
कभी बादल गहराने पर होती थी फुहार,
आज वह बादल भी सूखा निकल गया,
क्या प्रदूषण का दानव सब निगल गया?
अपनी- अपनी प्रगति तो देख लेते सभी,
पर ऊपर का धुंआ ना कोई देख पाया,
लगता है नूर ना था किसी निगाहों में,
जब यह हवा में धुलकर ज़हर बन गया,
तभी प्रदूषण का दानव सब निगल गया।
सुना था जल ही जीवन हुआ करता है,
आज वही जल पीकर इन्सान मर गया,
गंगा जल तो इतना पवित्र कि पाप धुलते,
गंगा के लिए गंगाजल का अकाल पड़ गया,
क्या प्रदूषण का विष सिर चढ़ गया?
कहीं कांपती है धरती पड़ गया अकाल,
जलस्तर बढ़कर बनता है विपदा का जंजाल,
आसमान की बिजली बनती निस दिन देखो काल,
क्यों ना हो जब मानव प्रकृति का दानव बन गया,
तभी तो प्रदूषण का दानव सब निगल गया।
मौक़ा है आज भी मानव अगर संभल जाए,
सजग बने प्रकृति की हिफाज़त में जुट जाए,
तो फिर प्रकृति ना अपना यूं खेल दिखाए,
अगर ऐसा ना हुआ तो कहना गलत न होगा कि,
प्रदूषण का दानव मानव को निगल गया।।