_ऐ मौत_
ऐ मौत
दे विश्वास
तू अडिग है अटल है
निराकार है साकार भी
समय की छाती पर
बहती उन्मत्त नदी सी
ऐ मौत
तू ही सच
बाकी मिथ्या
जिंदगी मिलती तुझे पाने को
तू है तो जीवन सार
तू नही तो सब असार
आ गले लगने को
हूं तैयार
ऐ मौत
दे अभय
आये जब तू पास मेरे
चेहरे पर मुस्कान हो
बादशाह सी शान हो
नफरत का निशां नही
प्यार का पैगाम हो
ऐ मौत
दे संबल
आये जब नजदीक मेरे
समझूं ये अच्छा है
न कि ये बुरा है
बुरे मे कुछ अच्छा है
अच्छे मे भी अच्छा है
ऐ मौत
दे अमोह
ये महल चौबारे
रिश्ते नाते प्यारे
अपने और पराये
यहीं रह जायेगे सारे
ऐ मौत
सुन जरा
टूट कर बिखरे
उठने की चाह बाकी
वैसे तो जिंदा हूं
जिंदगी जीना बाकी
अपनी भी दुनियां है
खुद को ढूंढना बाकी
ऐ मौत
सब्र कर जरा
कुछ कर्ज अभी बाकी हैं
उतार लूं तो चलूं
कुछ फर्ज अभी बाकी हैं
निभा लूं तो चलूं
कुछ अनछुए रह गए
गले लगा लूं तो चलूं
@ अश्वनी कुमार जायसवाल
स्वरचित
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