998 ऐ मेरे दोस्त
तुमने मेरी दोस्ती को ना पहचाना।
जरा सी बात का बना दिया अफ़साना।
जरा अगर तू, सोच कर देखता।
न यूँ समझता तू मुझको बेगाना।
ज़रा देख गहराई से मेरे नजरिए को।
क्या चाहता हूँ मैं तुझको कहना।
तेरा भला ही सोचूँगा मैं हरदम।
मैं सोच भी नहीं सकता तुझसे दूर रहना।
अा गले लग जा मेरे दोस्त।
याद कर अपना कोई मीठा सा तराना।
दूर हो जाएं सब रंजिशें दिलों की,
मिल जाए पास आने का फिर कोई बहाना।
दोस्ती से आगे कुछ नहीं इस जहां में।
है बहुत मुश्किल दोस्तों से दूर जाना।
अा गले लग जा मेरे दोस्त।
हो जाए फिर से अपना याराना।