981 चाहा है तुझे
वो तअस्सुर( प्रभाव) है तेरी आँखों में।
कि ,खिंचता ही चला जाता हूँ।
तू ही कायनात, तू ही जान ए हयात।
बिन तेरे, मिटता ही चला जाता हूँ।
चाहत है तेरी कुरबत की, ऐ हसीन।
दूर रहकर मैं चैन कहाँ पाता हूँ।।
कहीं तो बाबस्ता है तू मुझसे।
तभी तो बिन तेरे मैं रह नहीं पाता हूँ।
बड़ी शिद्दत से चाहा है मैंने तुझे।
देखें कब ,साथ मैं तेरा पाता हूँ।