960 खारों की बस्ती
खामोशी है हर तरफ,
गुल गुलशन मुरझा गए।
खारों ( कांटों )ने बस्ती सजाई है।
चाँद ने भी खो दी चाँदनी।
गुल तिश्रन्गी में मर्ग (खत्म) हुआ।
खारों ने बस्ती बसाई है।
आ़मादा है हर कोई यहाँ।
जहान में फ़ना होने को।
हर तरफ बेचैनी छाई है।
बदस्तूर जारी है मर्ग ए मंजर,
फ़रोग ( उन्नति )की दुनिया में,
किसको ख्याल में आई है।
इनायत जो हो उस खुदा की।
मंजर यह कुछ संवर जाए।
मुर्तजा़ (मन वांछित) ए करम दुहाई है।