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ग़ज़ल
1212 1212 1212 1212
मिले गुरु वशिष्ठ राम नाम दिव्य हो गया।
जो भेद द्रोण ने किया तो एकलव्य हो गया।।
कि राम बनके देखिये गा राम के प्रभाव को।
न आँख सीता पे उठी लँकेश सभ्य हो गया।।
है प्रेम का प्रतीक जिसके मन में प्रेम था नहीं।
कि लाखों हाथ काटकर भी ताज भव्य हो गया।।
विकास हो रहा किसी का रोजगार छिन रहा।
मशीनी दौर में मगर सभी सुलभ्य हो गया।।
दिखा रहे हैं लोग ऐसे सीधे पे सियानपन।
वो गीत था पुराना और साज नव्य हो गया।।
रहीम औ कबीर तुलसीदास की धरा पे ही।
मैं धन्य हो गयी कि मेरा काव्य श्रव्य हो गया।।
लगन लगी जो रामजी से जिंदगी बदल गयी ।
कि ज्योति काम क्रोध लोभ मोह हव्य हो गया।।
✍ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा
जिला नरसिंहपुर (mp)