5). *मां*
मां मेरी इस लाल को आशीष दे दे मां
हूँ बहुत गरीब तुझे फीस दूं मैं क्या।
दुनियां मे तेरे बिन कही न है कोई जन्नत
तू काट के आंचल का अपने पीस दे दे मां।।1
मागी न मुझसे कुछ भी चाहे सोई भूखी तू
खिलाके मुझको ही सदा खाई रोटी रूखी तू।
बनवास अविरल का मां अभी पूरा न हुआ
सपनों के लिए मेरे मां क्यों होती दुखी तू ।।2
मां तेरे ही आशीष पर जग का विश्वास है
तू सूने हर इक दिल की इकलौती आस है।
अभी दुनियां में मेरी मां न तेरा नाम कर सका
क्यों मेरे ख़्वाब अविरल के लिए तू उदास है।।3
मां ही इस दुनियां की इकलौती ऐसी छाया है
लाखों गम सह के भी ममता को ही लुटाया है।
हजारों बार हमने मां का दिल दुखा डाला
हर बार मुस्कुरा के मुझे मां ने गले लगाया है।।4
सारे जहां ने पूछा कि क्या मेरे लिए लाओगे
यार और प्यार ने कहा कि क्या मुझे दिलाओगे।
भ्राताओं ने इस जग में क्या क्या न बंटाया अविरल
बस मां ने ही ये पूछा कि तुम क्या क्या मुझसे खाओगे।।5
आशीष अविरल चतुर्वेदी
प्रयागराज
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