9) “जीवन एक सफ़र”
जीवन एक सफ़र ही,मंज़िल मेरी दिखाता है।
सिखा देता यह अदभुत सफ़र, सीखा कर नहीं कोई लाता है।
प्रारम्भिक कदम परिवार है,मनुष्य को चलना सिखाता है।
मंज़िल तो दूर रहती, मानव ज़रूर बनाता है।
आदर-सम्मान वं अनुशासन का पाठ पढ़ा कर,
उचित अनुचित मूल्यों को सम्माहित भी कर जाता है।
जीवन है सफ़र ही मंज़िल मेरी दिखाता है॥
बुराई अच्छाई को,झूठ सच्चाई को,जीत की परिभाषा सिखाता है।
सर्वोपरि है दया, प्रेम, करूणा का भाव,
मनुष्य से मानव एंव इंसान से इंसानियत बनाता है।
जीवन है सफ़र ही मंज़िल मेरी दिखाता है॥
सवार्थमूलक से परार्थमूलक जीवन का आधार होता है।
उपलब्धि का सफ़र है मंज़िल, अदभुत रचना का स्वामी मानव,
साकारात्मक सोच अपनाता है।
जीवन है सफ़र ही मंज़िल मेरी दिखाता है॥
रास्ते ग़र टेड़े मेड़े, पत्थरों से मिलवाता है।
थक कर बैठ जाना नहीं, मुरम्मत भी करना सिखाता है।
जीवन है सफ़र ही मंज़िल मेरी दिखाता है॥
उँगलियाँ बनी कलम मेरी, लिखने को हाथ उकसाता है।
हर पल लिखना चाहूँ ग़र शब्दों से पन्ना भर जाता है।
सफ़र मेरा कुछ अंजाना,कछ पहचाना सा,
सकून है लेखन,मंज़िल मेरी दिखाता है।
जीवन है सफ़र ही मंज़िल मेरी दिखाता है॥
✍🏻स्व-रचित/मौलिक
सपना अरोरा ।