5-सच अगर लिखने का हौसला हो नहीं
ये तो मुमकिन नहीं आशिकी छोड़ दें
गर कहो तो अभी ज़िन्दगी छोड़ दें
ग़ैर के हो गए तुम ख़बर है मगर
दीद की कैसे हम तिश्नगी छोड़ दें
जाम आँखों से गर तुम पिलाने लगो
मयकदे की हर इक हम गली छोड़ दें
सामने सहरा हो तो अलग बात है
कैसे दरिया में हम तिश्नगी छोड़ दें
हसरत-ए-वस्ल में मैं तो ज़िंदा रहा
ग़ैर-मुमकिन जो हो ज़िन्दगी छोड़ दें
बाद मुद्दत के हम तुम मिलें हैं सनम
इन लबों में दबी ख़ामुशी छोड़ दें
लोग कहने लगे हैं अमीर आदमी
इसलिए अपनी क्या सादगी छोड़ दें
कश्ती काग़ज़ की जिसमें चलाये थे वो
किस तरह गाँव की हम गली छोड़ दें
जिनके दिल में बची हो न इंसानियत
ऐसे लोगों से फिर दोस्ती छोड़ दें
जाने कितने उजाड़े हैं घर को मियाँ
लत बुरी है नशे की सभी छोड़ दें
सच अगर लिखने का हौसला हो नहीं
बन के बुज़दिल रहें लेखनी छोड़ दें
@अजय कुमार ‘विमल’