784 नये साल के नये पल
मुड़ के देखा तो समय का पंछी उड़ गया था।
कैसे बीता वह समा ,जो कल तक तो नया था।।g
आने वाले दिनों की, सोचें थी, मन में तब कितनी।
कैसे बीता वो समा ,जो पहले आया भी ना था।।
यूँ हीं चलते चलते राहें बन गई।
यूं ही जीते जीते यादें बन गई।।
यह सामां जो बीता खट्टे मीठे अनुभवों से।
अच्छी बुरी यादों का ,किस्सा बन गया।।
दुआ है अब तो आए दिन खुशी के और बहार के।
हर किसी का समां बीते खुशियों से नए साल में।।
सोचे हम बस नये पलों के बारे में अब।
क्यों सोचे जो समा पंछी बन उड़ गया।।