7. *मातृ-दिवस * स्व. माँ को समर्पित
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
क्या लिखूँ तुम्हारे लिए मैं ‘माँ’
भूल चुकी तुम कैसी थी!
अल्फ़ाज़ नहीं है लिखने को…
तुम्हारी सूरत और सीरत कैसी थी।
दुनिया दिखाई तुमने मुझे…
दुनियादारी भी तो सिखा जाती।
क्यों हो इतनी जल्दी जुदा,
काश! कुछ समय तो साथ बिता जाती।
क्या होता है माँ- बेटी का रिश्ता…
इस जीवन में नहीं मैं जान पाई।
इस स्नेह-बंधन के अहसास से….
क्यों मै अपना आंचल नहीं भर पाई।
तुम्हारे बिन इस जग में….
एक-एक कदम चलना मजबूरी है ।
अब ख्वाहिशें तो ….
‘मधु’ सब चाहे पूरी है ,
मगर फिर भी तुम्हारे बिन “माँ” …
जिंदगी हरपल अधूरी है।
क्या लिखूँ तुम्हारे लिए मैं ‘माँ’
भूल चुकी तुम कैसी थी!
अल्फ़ाज़ नहीं है लिखने को…
तुम्हारी सूरत और सीरत कैसी थी।
दुनिया दिखाई तुमने मुझे…
दुनियादारी भी तो सिखा जाती।
क्यों हो इतनी जल्दी जुदा,
काश! कुछ समय तो साथ बिता जाती।
क्या होता है माँ- बेटी का रिश्ता…
इस जीवन में नहीं मैं जान पाई।
इस स्नेह-बंधन के अहसास से….
क्यों मै अपना आंचल नहीं भर पाई।
तुम्हारे बिन इस जग में….
एक-एक कदम चलना मजबूरी है ।
अब ख्वाहिशें तो ….
‘मधु’ सब चाहे पूरी है ,
मगर फिर भी तुम्हारे बिन “माँ” …
जिंदगी हरपल अधूरी है।
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