7) तुम्हारी रातों का जुगनू बनूँगी…
कब तक बाँटोगे दुःख-दर्द मेरे,
सहोगे कब तक यह सब तुम मेरे लिए ?
जुदा ही हो जाना है हमें एक दिन,
एहसास है मुझे
और जानते हो तुम भी मगर,
फिर क्यूँ यह सब ?
क्यूँ इतनी हमदर्दी, इतना प्यार,
इतनी मुहब्बत देते हो तुम ?
दुनिया के सितम सहते-सहते
आँसू भी बहा चुकी,
तुम्हारी हमदर्दी से अक्सर
दिल भर आता है अब मेरा।
अपने नहीं बाँटते कभी भी गम,
एहसास हो गया है मुझे,
गैर हो कर भी तुम अपने हो गए।
ज़रा सी आहट भी न होने दी,
और दिल में आशियाँ बना लिया तुमने।
हर दुःख, हर दर्द लेकर हर ख़ुशी दी तुमने,
क्या मिला तुम्हें बताओ,
क्या मिलेगा इसके एवज़ तुम्हें ?
काश ! कुछ तो दे सकती तुम्हें मैं
कुछ तो ऐ काश !
इस ‘कुछ’ में ही ‘इतना कुछ’ होता
कि कुछ भी न रहता पास मेरे
तुम्हारी खुशियों के सिवा।
तुम्हारी हँसी, तुम्हारी मीठी गुफ्तगू,
प्यार भरी बातों को याद करुँगी,
तुम्हें दुआएँ दूँगी हर साँस, हर लम्हा।
यह निगाहें तुम्हारी राहों में सजदा किया करेंगी,
फूल बिछाया करेंगी तुम्हारे कदमों में।
जब भी जिस राह से भी आया करोगे तुम,
ख़ाक बन कर राहों में तुम्हारी बिछ जाया करुँगी मैं।
तुम्हारी कारी अंधियारी रातों का जुगनू बन जाऊँगी,
तुम्हें राह दिखाया करुँगी मैं।
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नेहा शर्मा ‘नेह’