7. क्या कर दूँ ?
जी करता है सारे ग़मों को तेरे दिल से बेघर कर दूँ।
फिर तेरे खाली दिल में अपना एक प्यारा घर कर दूँ।।
अरमान कई पाल रखे हैं हम ने तेरे प्यार पाने को।
जो तू मिले तेरी गोद के हवाले अपना सर कर दूँ।
तू क्या जाने क़ीमत एक बूंद छलकते आँसूँ की ।
अपने इन सुुर्ख़ अश्कों से तेरी आँखें तर कर दूँ।।
तेरी ही हुकूमत चलती है मेरे दिल के कोने कोने में।
तो क्यों न इस धड़कन को तेरे नाम हर पहर कर दूँ।।
न ठुकरा तू मोहब्बत के इस ख़ुदाई तोहफे को हरगिज़।
कहीं रब से तुझे मांगने मैं खुद को न सुपुर्दे क़बर कर दूँ।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया