6. शहर पुराना
जो हाथ पकड़कर चलते थे कभी वो आज नज़रे चुराते हैं,
शायद उनके शाम का सूरज अब कहीं और ढलता होगा ।
वो एक बार को देखते थे हम देखते रहते जाते थे,
अब उनके नयनों का दर्शन कोई और कहीं करता होगा ।
उनके मोहल्ले की वो गली बल खाके बाएँ को मुड़ती थी,
अब भी शायद मुड़ती होगी बस मोहल्ला कोई और होगा ।
शहर पुराना हो गया मेरा यही वजह थी जाने की,
अब तो शायद उनका भी शहर नया कोई और होगा ।
होगा महल कोई उनका भी जैसी खबर कुछ लाए थे,
मगर बरामदे का वो सावन बस अब और नहीं होगा।
~राजीव दुत्ता ‘घुमंतू’