6. धारा
नदी की बहती धारा
छू लेती है जब किनारा ।
तृप्त हो जाता है वो ,
अतृप्त बह जाती है धारा ।।
बहना –
गति है उसकी,
वेदना –
नियति है उसकी ।
तडपन –
नही दिखती जिसकी।
गहना –
गहराई है उसकी।
वह –
नदी की ही धारा,
छू लेती है जब किनारा।
बस –
छाप छोड़ जाती है वह
सिसक्त सा रह जाता है किनारा।
कट कर कह उठता है वह
है क्या अस्तित्व तुम्हारा?
है यह मेरा —–।
मैं नहीं तो कौन हो तुम?
किसकी हो तुम धारा ?
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