5- होलिका पर्व
होलिका पर्व
शरद ऋतु अन्त, हुआ होली का आगमन ।
लहलहाते खेत देख, कृषक का फूला मन।।
फूल फुलवारी खिली, बसंत बयार में।
भौर मंडराने लगे, हार सिंगार में ।।
मानव मदमस्त गायें, होली के तराने ।
रंग-बिरंगी तितली, लगी फूलों पर इठलाने।।
होली का पर्व आया, लेकर मन में खुशियाँ।
घर-घर में बनने लगीं, मीठी-मीठी गुझिया ।।
रंग पिचकारी भर, बच्चे मदमस्त हैं।
हर किसी को रंगने हेतु, लगते बड़े व्यस्त हैं।।
हरा पीला नीला लाल, गुलाल बड़ा प्यारा।
चेहरे पर लगाते रूप बनता सबसे न्यारा।।
शक्ल बदल जाती पहिचान में नहीं आता।
थिरक-थिरक नाचें और गायें मतवाले।।
गुझिया पकौड़ी खायें, भिन्न-भिन्न निवाले।
होलिका दहन की, पुरानी चली रीत है ।।
भुलाकर सब भेद-भाव बढ़ाते सदा प्रीत है।
“दयानंद”