5.वर्षों बाद
वर्षों बाद लौटे हैं मेरे कदम,
ढूंढने चीड़ देवदार औ’ कैल के वन।
हरी-भरी धरती गहरा नीला आकाश।
चमचमाते सूरज का वह अनोखा प्रभात।।
वर्षों बाद लौटे हैं मेरे कदम
ढूंढने मैं “औ” मेरी तन्हाई को
पेड़ की नीड़ पर बसी तान को
ताल देते पत्तों की मीठी सरगम ।।
मगर—-
ठिठक गए हैं कदम वर्षों बाद ,
खो गया है प्रकृति का वह उल्लास
तरंगायित, मधु गुंजित वह प्रभात,
कण-कण बिखरता पराग कंज।
महलों का फैलता यह अंबार
चीखती, बिलखती किलकारियों का शोर
थरथरा रहे मेरे कदम, तन औ’ मन
क्या घुट घुट ही बढ़ेगा अब बचपन ?
*****