4757.*पूर्णिका*
4757.*पूर्णिका*
🌷 अपना बन पाए नहीं 🌷
22 22 212
अपना बन पाए नहीं ।
सपना बन पाए नहीं ।।
प्यार यहाँ हम चाहते।
सजना बन पाए नहीं ।।
बेदिल अरमाँ पालते।
आभा बन पाए नहीं ।।
खींचेंगे अब हाथ भी ।
तारा बन पाए नहीं ।।
बढ़ते खेदू कदम यूं ।
हीरा बन पाए नहीं ।।
……✍ डॉ.खेदू भारती “सत्येश”
24-10-2024गुरूवार