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नाव को फेक, पाँव में जो, भंवर बांध लेते है
नादान लोग, जीने अजब ,हुनर बाँध लेते हैं
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क़ब पड़ा फर्क, जमाने को, मेरे होने का इन दिनों
सूखी शाखों बदले, सब्ज शजर बांध लेते है
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बचपन ढूंढ रहा हो, गलियों में जब निवालो को
खौफ जदा हम भी, आजकल, शहर बाँध लेते हैं
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लोग चुप थे ,, हादसा छूकर निकला नही, बस उनको
एहतियात के तौर , गठरी वे ,पत्थर बाँध लेते हैं
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कोई तो, माहिर बैद- बैगा- गुनिया बुला लाओ
कहते, उड़ती हवा ,उसूलो नजर बांध लेते है
सुशील यादव
27.3.24