(4) बेटियां
बेटियां तो भगवान ने परियों के रूप में उतारी है,
फिर ये क्यों अपनी होकर भी पराई हैं।
बेटियां तो बस बेटियां होती हैं । पर सब जानते हैं ये अपनी कहा होती हैं।
हंसना सीखा देती हैं ये रोटी हुई आंखों को।
बेटा तो आंसू पोंछता है,
पर ये रोना भूला देती हैं आंखों को।
बेटा तो एक कूल को रोशन करता है।
इन बेटियां को दो कुलों को रोशन कर के,
भी पराई होने का ईनाम मिलता है।
बेटियां तो बस बेटियां……….ये अपनी कहा होती है।
एक बेटी को जन्म देते हुए तो,
एक पुरुष की रुह कांपती है।
उस वक्त कहां जाती है ये रुह,
जब ये एक बेटी को रोंधती है।
बेटियां तो बस बेटियां………. ये अपनी कहां होती हैं।
क्यों अक्सर घर से बाहर निकल,
कर इन्सान ये भूल जाता है।
कि उसे भी घर पर कोई भईया,
और पिता कहकर बुलाता है।
अपने आंगन की बेटी सबको प्यारी लगती है,
पर घर से बाहर की बेटी क्यों सब,
को बेचारी लगती है।
ये बेटियां क्यों हर बार इतनी मजबूर होती हैं।
बेटियां तो बस बेटियां होती हैं……… ये अपनी कहां होती हैं।