4. ग़ज़ल
तू ने अगर मुझे दिल से दिया आवाज़ है।
तो हम ने भी दिल से छेड़ दिया साज़ है।।
जूनून-ए-ईश्क़ में क्या ख़ुमार है छाया।
तेरे नाम फ़क़त ग़ज़ल कर दिया आज है।।
क़लम ने देने से इनकार किया नुक़्ता भी।
प्यार से हम ने उसे बना लिया हमराज़ है।।
मतला ने भी इस पे ख़ुब किया मुख़ालेफ़त।
कह दिया-‘तू ने तो ग़ज़ल को दिया ताज है’।।
रदीफ़ का झिझकना देख होश हुआ गुल।
बोला-‘तेरे झंकार से ग़ज़ल में आया नाज़ है।।
ज़िद्द पे अड़े काफ़िया को किया तैयार ये कह-
“तेरे बग़ैर रदीफ़ ने अपना खो दिया अलफ़ाज़ है।”
बहर को रज़ामंद किया बस इस बात पे कि
बिना साथ तेरे ग़ज़ल का टूट गया अंदाज़ है।।
मकता से नाम या शोहरत नहीं चाहिए मुझे।
बग़ैर मकता मेरे ग़ज़ल ने किया परवाज़ है।।
मेरे ख्याल-ए-मोहब्बत में आया जब वज़न है।
तो हम ने अब मोहब्बत का छेड़ दिया आगाज़ है।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया