4- गंगा जी की यात्रा
गंगा जी की यात्रा
गंगोत्री के गोमुख से, गंगा जी का उद्गम।
जल है जिसका अमृत, नहीं है किसी को भ्रम।।
अविरल आगे बढ़ती, इठलाती चली गंगा धार।
कोलाहल करती सरिता, पहुँच गई हरिद्वार ।।
हरि पग प्रक्षालन कर, गंगा बढ़ती गई आगे।
जहाँ किया विचरण, भाग्य कृषकों के जागे।।
मुक्ति सगर पुत्रों हेतु गंगा गढ़ में पधारी।
घाट-घाटवालियों की ज़िन्दगी संवारी ।।
लम्बा सफर पार कर पहुँची प्रयागराज।
नदी निकट वासियों के सुधारे अनेक काज।।
गंगा यमुना सरस्वती का संगम अनोखा।
अलग-अलग धाराओं के मध्य खिंची रेखा ।।
तीनों धारा मिलकर हैं आगे बढ़ जाती ।
कलकत्ता के निकट गंगा सागर में समाती।।
गंगा जी की यात्रा की छोटी सी कहानी।
मुक्ति-दाता गंगा मैय्या सबकी महारानी ।।
“दयानंद”