4 खुद को काँच कहने लगा …
4 खुद को काँच कहने लगा …
खुद ही टकराता खुद ही चोट खाता ,
दिल हर दिन नए किस्से सहने लगा
वरदान मिला अंधेरों को या है मजबूरी ,
क्या करता उजला चाँद अंधेरे सहने लगा
चोट खाए मन को है तन्हाइयों की ज़िद ,
अब उसका भी दर्द आंखों से बहने लगा
उसने हीरे को इस कदर काँच कहा कि ,
हीरा भी खुद को काँच ही कहने लगा
जो कभी किसी की आंखों का नूर था ,
वो अब जुगनुओं सा मजबूर रहने लगा
क्षमा ऊर्मिला