4) इल्तिजा
सुबह की भीनी-भीनी फ़िज़ा में,
गूँजता है सिर्फ तेरा ही नाम।
रात के बेकरां सन्नाटे में,
गूँजता है सिर्फ तेरा ही नाम।
और यह दिल,
यह नादान दिल पुकारता है
सिर्फ तेरा ही नाम।
सदा देता है सिर्फ तुझे ही मगर,
जान कर भी क्यूँ बेदर्द बन गए हो अब !
आ भी जाओ, आ भी जाओ,
आ भी जाओ तुम अब।
वरना सदा ही रह जायेगी हम नहीं,
बन जाएगा यह जिस्म फिर लाश ही।
इल्तिजा केवल इतनी है ऐ मेरी मुहब्बत,
इक नज़र लाश को तो देख लेना मुड़ कर।
चैन मिल जायेगा मर कर ही रूह को,
जीते जी न मिल पाया जो इसको।
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नेहा शर्मा ‘नेह’