3115.*पूर्णिका*
3115.*पूर्णिका*
🌷 हर हाथों में खंजर देखो🌷
22 22 22 22
हर हाथों में खंजर देखो।
दिल दहले ये मंजर देखो ।।
साफ नहीं नीयत इंसां की ।
निकले यूं अस्थि पंजर देखो।।
खून पसीना काम न आते।
उर्वरा भू भी बंजर देखो।।
जीना कैसे मरना कैसे।
उठती लहर समंदर देखो।।
दुनिया ऐसी चलती खेदू।
बनके आज सिकंदर देखो।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
12-03-2024मंगलवार