#दोहे
जिस छत नीचे धूप हो , उसे बदलना ठीक।
जिस उत्तर से दिल भरे , मानो वही सटीक।।
झूठ झुकाए मत झुको , सच पर हो कुर्बान।
रोज-रोज मरना करे , ख़ुद से ही अनजान।।
बुद्धिमान कर जोड़ते , मूर्ख बाँटते ज्ञान।
हृदयघात से कम नहीं , आया जो तूफ़ान।।
पैर कब्र में हैं गड़े , करें नृत्य की बात।
कहते इसको ही यहाँ , बिन बादल बरसात।।
दाग़ दिखाएँ चाँद का , औढ़े स्वयं नकाब।
चोर बसा हर रोम में , माने नहीं ज़नाब।।
घर औरों के जब लुटे , देख-देख अनजान।
खुद के घर खँडहर हुए , रो-रोकर बेजान।।
मेघ देखकर सीख लो , मत भटको इंसान।
ख़ुद मिटके परहित करें , जैसे देश जवान।।
#आर.एस.’प्रीतम’