3) बारिश और दास्ताँ
आज बारिश जो आ गई,
आ गई याद मुझे माज़ी की हर बात।
पहली दफा लुत्फ़ लिया था बारिश का
तेरी ही बज़्म में,
हर बारिश तब लुत्फ़ दे जाती थी मुझे।
मगर तुझसे जुदाई भी तो
ऐसी ही बारिश में हुई थी,
मिले भी तो बारिश में ही थे तुम,
सता जाती है फिर बारिश क्यूँ?
ठहरे पानी में जब बूँद पड़ती है कोई,
एहसास होता है मेरी ठहरी सी ज़िन्दगी में,
कोई याद दर्द की बूँद बन कर आ गई जैसे,
हर बूँद के साथ इक याद वाबस्ता है तेरी।
बारिश में दर्द का एहसास तब हुआ
जब मेरा पहला आँसू बूँद बन कर टपका था।
हसीन याद भी यूँ तो जुड़ी है बारिश से,
मगर तल्ख़ याद तड़पा जाती है दिल को
कुछ इस तरह
कि धुँधली पड़ जाती है
हसीन याद की शफ़क इसके सामने।
अब तो ज़िन्दगी यूँ ही बीतेगी
हर बारिश में लिख कर
इक दास्ताँ अपनी।
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नेहा शर्मा ‘नेह’