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28 May 2021 · 1 min read

3.-गलतफहमी की बरसात

कोरे कागज से जीवन पर
उतारा मैंने सुखद एहसास,
लिखा था स्नेह की स्याही से
सजाया नेह की लिखाई से
महकाया वात्सल्य की इत्र से
निहारा था मैंने अनुभूति भाव से
कितना खास था वो स्नेहिल एहसास
पर अति की अधिकाई से
पहुंचा मेरे एहसास को नुक़सान
उमड़ पड़ी जब गलतफहमी की बरसात
भीग गया एहसास भरा जीवन कागज
गल गया स्नेह का हर शब्द
मिट सा गया नेह भरा हर लफ्ज
उड़ गई सुगंध वात्सल्य इत्र की
अभाव में हो गई अनुभूति भी खाक।

– सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान

4 Likes · 10 Comments · 323 Views
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