2889.*पूर्णिका*
2889.*पूर्णिका*
🌷 पता नहीं क्यों रोने लगे🌷
1212 22 212
पता नहीं क्यों रोने लगे।
नया नया जो होने लगे।।
अजीब सा मंजर है यहाँ ।
वजूद खुद को खोने लगे।।
तलाशतें रहते जिंदगी।
खुशी सभी तो बोने लगे।।
भले बुरे रहते लोग भी ।
उदास देखो कोने लगे।।
उपासना खेदू बंदगी ।
निष्पाप अपना धोने लगे ।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
03-01-2024बुधवार