2772. *पूर्णिका*
2772. पूर्णिका
* महके बगियां खिले कुसुम *
22 22 1212
महके बगियां खिले कुसुम।
निखरे निखरे यहाँ कुंकुम ।।
भर बांहों में सनम कहे।
मन करता है तुझे लूं चुम ।।
जग बदले आज देख लो ।
रहना मत हरदम गुमसुम ।।
नादान नहीं बने जहाँ ।
रखते हो सब समझ तुम ।।
झूमे खेदू धरा गगन ।
चाहत अपनी बस तब्बसुम ।।
………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
27-11-2023सोमवार