2764. *पूर्णिका*
2764. पूर्णिका
आदमी है नहीं आदमी
212 212 212
आदमी है नहीं आदमी ।
रोज कहते नहीं कुछ कमी ।।
मतलबी साथ रहते यहाँ ।
आँख में है नहीं कुछ नमी ।।
क्या बचा देख लो ये जहाँ ।
आसमां है नहीं कुछ जमीं ।।
जिंदगी बस नदी बन गई ।
धार बहते नहीं कुछ थमी।।
मौत खेदू कहाँ रूकती।
हसरतें बस नहीं कुछ लक्ष्मी ।।
……..✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
25-11-2023शनिवार