बच्चे पढ़े-लिखे आज के , माँग रहे रोजगार ।
मुझे फुरसत से मिलना है तुमसे…
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
चार दिन की जिंदगी किस किस से कतरा के चलूं ?
गाय को पता नहीं/ प्रसिद्ध व्यंग्यकार और कवि विष्णु नागर की कविता
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जो गूंजती थी हर पल कानों में, आवाजें वो अब आती नहीं,
**** फागुन के दिन आ गईल ****
ग़ज़ल _ आज उनको बुलाने से क्या फ़ायदा।
आप से दर्दे जुबानी क्या कहें।
नहीं कहीं भी पढ़े लिखे, न व्यवहारिक ज्ञान
नयी कोपलें लगी झाँकने,पा धरती का प्यार ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
"राजनीति में आत्मविश्वास के साथ कही गई हर बात पत्थर पर लकीर
■ तंत्र का षड्यंत्र : भय फैलाना और लाभ उठाना।
एहसास कभी ख़त्म नही होते ,