साहित्य सत्य और न्याय का मार्ग प्रशस्त करता है।
ग़ज़ल _ रूठते हो तुम दिखाने के लिये !
यूं अपनी जुल्फों को संवारा ना करो,
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
यादों पर एक नज्म लिखेंगें
माई कहाँ बा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उसकी कहानी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
माता रानी का भजन अरविंद भारद्वाज
संवेदनशील होना किसी भी व्यक्ति के जीवन का महान गुण है।
मुस्तक़िल जीना यहाँ किसको मयस्सर है भला
जब ‘नानक’ काबा की तरफ पैर करके सोये
” क्योंकि , चांद में दाग़ हैं ! “
ढूँढू मैं तुम्हे कैसे और कहाँ ?
गौर फरमाएं अर्ज किया है....!