" REMINISCENCES OF A RED-LETTER DAY "
जिंदगी मिली है तो जी लेते हैं
लगाओ पता इसमें दोष है किसका
**कहीं कोई कली खिलती बहारों की**
भाग्य की लकीरों में क्या रखा है
हर तीखे मोड़ पर मन में एक सुगबुगाहट सी होती है। न जाने क्यों
23/83.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
शिक्षक उस मोम की तरह होता है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश
झकझोरती दरिंदगी
Dr. Harvinder Singh Bakshi
ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
शीर्षक - नागपंचमी....... एक प्रथा
जिसे सुनके सभी झूमें लबों से गुनगुनाएँ भी