आप की है कोशिशें तब नाकाम होती है।
ख़्वाब ख़्वाब ही रह गया,
अजहर अली (An Explorer of Life)
मेरी कलम से बिखरी स्याही कभी गुनगुनाएंगे,
तुम जहा भी हो,तुरंत चले आओ
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
दोहा छंद विधान ( दोहा छंद में )
कभी-कभी डर लगता है इस दुनिया से यहां कहने को तो सब अपने हैं
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दर-बदर की ठोकरें जिन्को दिखातीं राह हैं
मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं
क्युं बताने से हर्ज़ करते हो