*हाले दिल बयां करूं कैसे*
आंसुओं से अपरिचित अगर रह गए।
तुमसे अक्सर ही बातें होती है।
अकेले तय होंगी मंजिले, मुसीबत में सब साथ छोड़ जाते हैं।
23/168.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
दोहा छंद विधान ( दोहा छंद में )
मन मसोस कर रोना तो जिंदगी ने ही सीखा दिया है
पहले जो मेरा यार था वो अब नहीं रहा।