जीवन में फल रोज़-रोज़ थोड़े ही मिलता है,
वो भी थी क्या मजे की ज़िंदगी, जो सफ़र में गुजर चले,
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
खुद में भी एटीट्यूड होना जरूरी है साथियों
खिंची लकीर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रोज दस्तक होती हैं दरवाजे पर मेरे खुशियों की।
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों से ,
जिंदगी मुस्कुराती थी कभी, दरख़्तों की निगेहबानी में, और थाम लेता था वो हाथ मेरा, हर एक परेशानी में।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
किसी ने हमसे कहा कि सरोवर एक ही होता है इसमें हंस मोती ढ़ूँढ़त
रिश्ते वक्त से पनपते है और संवाद से पकते है पर आज कल ना रिश्
किसी को इतना भी प्यार मत करो की उसके बिना जीना मुश्किल हो जा
*कहा चैत से फागुन ने, नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन (गीत)*
*प्रेम बूँद से जियरा भरता*