नज़र से मय मुहब्बत की चलो पीते पिलाते हैं
किसी से भी कोई मतलब नहीं ना कोई वास्ता…….
तुम्हें तो फुर्सत मिलती ही नहीं है,
जिंदगी के तराने
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तुझे याद करूं भी, तो कैसे करूं।
मैं एक नदी हूँ
Vishnu Prasad 'panchotiya'
दिल चाहता है अब वो लम्हें बुलाऐ जाऐं,
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता