Started day with the voice of nature
गर तू गैरों का मुंह ताकेगा।
मन के दीये जलाओ रे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Nature ‘there’, Nurture ‘here'( HOMEMAKER)
"सच के खिलाफ विद्रोह करते हैं ll
अब तो ख़िलाफ़े ज़ुल्म ज़ुबाँ खोलिये मियाँ
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
देख इंसान कहाँ खड़ा है तू
ग़ज़ल की नक़ल नहीं है तेवरी + रमेशराज
फिर क्यों मुझे🙇🤷 लालसा स्वर्ग की रहे?🙅🧘