चराग़ों की सभी ताक़त अँधेरा जानता है
क्या पता मैं शून्य न हो जाऊं
रूह मर गई, मगर ख्वाब है जिंदा
दिल तो ठहरा बावरा, क्या जाने परिणाम।
मैं हू बेटा तेरा तूही माँ है मेरी
बंगाल में जाकर जितनी बार दीदी,
सूत जी, पुराणों के व्याख्यान कर्ता ।।
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बिखरी छटा निराली होती जाती है,
नील पदम् के दोहे
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
मां की ममता को भी अखबार समझते हैं वो,
*तीन कवियों ने मिलकर बनाई एक कुंडलिया*
ग़रीबी में भली बातें भी साज़िश ही लगा करती
*आस टूट गयी और दिल बिखर गया*