यूं आंखों ही आंखों में शरारत हो गई है,
इंसान और कुता
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उम्र पैंतालीस
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जिंदगी मौत से बत्तर भी गुज़री मैंने ।
*नौकरपेशा लोग रिटायर, होकर मस्ती करते हैं (हिंदी गजल)*
***** सिंदूरी - किरदार ****
"Awakening by the Seashore"
मिरे मिसरों को ख़यालात मत समझिएगा,
सभी भगवान को प्यारे हो जाते हैं,
कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखे
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
परिवार जनों का प्रेम स्नेह ही जीवन की असली पूंजी है और परिवा
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
हर किसी का एक मुकाम होता है,
मुस्कुराए खिल रहे हैं फूल जब।
""बहुत दिनों से दूर थे तुमसे _