ओ *बहने* मेरी तो हंसती रवे..
*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
कच्चे धागों से बनी पक्की डोर है राखी
Two Different Genders, Two Different Bodies And A Single Soul
जो खत हीर को रांझा जैसे न होंगे।
ऐसा तूफान उत्पन्न हुआ कि लो मैं फँस गई,
प्रिये
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जो धनी हैं वे धनी बनते जा रहे हैं,
तुझे देखा , तुझे चाहा , तु ही तो साथ हरदम है ,
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
जिंदगी भी रेत का सच रहतीं हैं।
ईश्वर कहो या खुदा
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो