अक्षर ज्ञानी ही, कट्टर बनता है।
Kisne kaha Maut sirf ek baar aati h
मुख्तलिफ होते हैं ज़माने में किरदार सभी।
कोशिश करना आगे बढ़ना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
काजल में उसकी काली रातें छुपी हैं,
अपनी तस्वीरों पर बस ईमोजी लगाना सीखा अबतक
जिनके अंदर जानवर पलता हो, उन्हें अलग से जानवर पालने की क्या
आँखों के आंसू झूठे है, निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
वही हसरतें वही रंजिशे ना ही दर्द_ए_दिल में कोई कमी हुई
हुए अजनबी हैं अपने ,अपने ही शहर में।
ज्यादा खुशी और ज्यादा गम भी इंसान को सही ढंग से जीने नही देत
*शत-शत जटायु का वंदन है, जो रावण से जा टकराया (राधेश्यामी छं
*जीवन में हँसते-हँसते चले गए*