लोहा ही नहीं धार भी उधार की उनकी
प्रकृति भी तो शांत मुस्कुराती रहती है
I can’t be doing this again,
*मेरी कविता कहती है क्या*
समय जो चाहेगा वही होकर रहेगा...
तमन्ना थी मैं कोई कहानी बन जाऊॅ॑
“फेसबूक मित्रों की बेरुखी”
*मिलता है परमात्म जब, छाता अति आह्लाद (कुंडलिया)*