कल है हमारा
singh kunwar sarvendra vikram
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
कोई मिठाई तुम्हारे लिए नहीं बनी ..( हास्य व्यंग कविता )
मैं भारत हूँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रास्तों पर नुकीले पत्थर भी हैं
सदपुरुष अपना कर्तव्य समझकर कर्म करता है और मूर्ख उसे अपना अध
ये भी तो ग़मशनास होते हैं
'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले। ये च हेलिमरी
चाँद पर रखकर कदम ये यान भी इतराया है
दानवी शक्तियों को सुधारा नहीं जाता था
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मुझे दर्द सहने की आदत हुई है।
अब कहां लौटते हैं नादान परिंदे अपने घर को,