दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी
कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
आख़िर तुमने रुला ही दिया!
सन्तुलित मन के समान कोई तप नहीं है, और सन्तुष्टि के समान कोई
तुम गए जैसे, वैसे कोई जाता नहीं
रामायण में भाभी "माँ" के समान और महाभारत में भाभी "पत्नी" के
दुनियाँ में सबने देखा अपना महान भारत।
एक मुठी सरसो पीट पीट बरसो
*पाऍं कैसे ब्रह्म को, आओ करें विचार (कुंडलिया)*
तेरे शहर में आया हूँ, नाम तो सुन ही लिया होगा..
क्यों आज हम याद तुम्हें आ गये
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
धुएं के जद में समाया सारा शहर पूछता है,
"उडना सीखते ही घोंसला छोड़ देते हैं ll
तालाब समंदर हो रहा है....
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
हमने उसको देखा, नजरों ने कुछ और देखा,,