खो दोगे
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
मेरी हर कविता में सिर्फ तुम्हरा ही जिक्र है,
"अहम्" से ऊँचा कोई "आसमान" नहीं, किसी की "बुराई" करने जैसा "
यदि चाहो मधुरस रिश्तों में
!! यह तो सर गद्दारी है !!
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
अभी अभी तो इक मिसरा बना था,
पूरा कुनबा बैठता, खाते मिलकर धूप (कुंडलिया)
परिस्थितियां बदलती हैं हमारे लिए निर्णयों से
बख़ूबी समझ रहा हूॅं मैं तेरे जज़्बातों को!
हमारी लंबी उम्र जितिया करने वाली से होती है, करवा चौथ करने व
Pyaaar likhun ya naam likhun,